मेढक का दर्द – medhak ka dard
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.टन . टन .टन की आवाज के साथ घंटाघर ने रात के तीन बजने की सूचना दी । बारिश के दिन होने के बावजूद बारिश नहीं होने से उमस बढ़ गई थी अतः मुझे नींद भी नहीं आ रही थी ।
मैं करवट बदल कर सोने की कोशिश कर रहा था तभी किसी के रोने सिसकने की आवाज सुनाई दी । मैं बिस्तर से उठ कर हाथ में डंडा और टॉर्च लेकर सिसकने की दिशा में चल पड़ा ।
आगे जाकर मैंने देखा कि तुलसी के चौरा के कोने में दुबका हुआ एक मेंढक सिसक रहा था । मैंने पूछा क्यों रो रहे हो मेंढक भैया ? उत्तर में वह शरीर को फुलाते हुए बोल पड़ा- मेरे माथे में भरे हुये सिंदूर को देखकर इतना भी समझ में नहीं आया कि मैं मेंढक नहीं , मेंढकी हूं ।
मैं भौंचक होकर पूछ पड़ा अरे तुम्हारे शरीर में किसने और क्यों सिंदूर लगा दिया ? मेरा प्रश्न सुनकर वह व्यंगात्मक भरे लहजे में बोली – तुम्हारे ही मानव समाज के लोगों ने मेरा जबरीया विवाह एक मेंढक के साथ आज कर दिया और उन्हीं अज्ञानियों ने मेरी मांग एवं शरीर को सिंदूर से भर डाला ।
मेढक का दर्द – medhak ka dard
दरअसल बारिश के दिन में जब बारिश नहीं होती है तो बहुत से अंधविश्वासी इंसान – ऐसी बेतुकी हरकत करते हैं । मानव समाज में ऐसी गलत धारणा प्रचलित है कि पानी नहीं गिरने पर मेंढक – मेंढकी का ब्याह करा देने से वर्षा होती है
मेंढकी की बुरी दशा देखकर मैं सोच में पड़ गया । आगे कुछ कह पाता उसके पहले ही वह अपने शरीर में पड़े सिंदूर को गिराने के लिए शरीर को जोर – जोर से हिलाने लगी ।
उसकी यह हरकत देखकर मैंने साहस करके पूछा – इस तरह अपने शरीर को जोर – जोर से क्यों हिला रही हो ? मेरे इस सवाल पर वह पुनः पूरी ताकत लगाकर अपने शरीर को फूलाकर गुस्सा व्यक्त करते हुए बोली मानव समाज तो अपनी बेटा – बेटियों का ब्याह बड़ा सोच विचार करके करता है एक ही जाति , धर्म में ही करता है फिर मेरा विवाह अपने अंधविश्वास और स्वार्थवश क्यों तुम लोगों ने एक विवाहित शराबी मेंढक से कर दिया ।
वह कुछ देर शांत रहकर रोते हुए फिर बोली कि शायद तुम्हे यह भी नहीं पता कि मैं पहले से ही विवाहित हूं । मेरे छोटे – छोटे बच्चे है । अब तुम्हीं बताओ मैं कहां जाऊं मेरी दशा तो धोबी का कुत्ता घर का न घाट का जैसी हो गयी है ।
मेंढकी की बातें सुन – सुनकर मुझे अपने मनुष्य होने पर शर्म आ रही थी । मुझे सूझ नहीं रहा था कि उसका दुख मैं किन शब्दों में व्यक्त करूँ । आगे उसे कुछ बोल पाता उसके पहले वह तड़फने लग गयी ।
मैंने उसे हाथ से सहलाने की कोशिश की तो उसने मेरे हाथ को झटक दिया और बिफर कर बोली तुम्हें यह तो पता होगा कि मेंढक – मेंढकी अपनी त्वचा से सांस लेते हैं । मेरी त्वचा में रासायनिक पदार्थ सिंदूर को भर डाला है ,
medhak ka dard
अतः मुझे सांस लेने में दिक्कत हो रही । अपनी बात को मेंढकी पूरा न कर सकी और उसकी सांसें रुक गयीं । मेंढकी की पीड़ा और उसकी मृत्यु ने मुझे विचार शून्य बना दिया ।
मेरे हाथ से टॉर्च छूट कर जमीन पर जा गिरी । इससे टॉर्च का काँच का बल्ब टूट कर बिखर गया और मेरे चारों ओर घना अंधेरा छा गया । घुप्प अंधकार में खड़ा मैं सोचने लगा मानों मेंढकी संदेश दे रही है कि पशु – पक्षियों व पेड़ – पौधों के साथ अत्याचार करने पर मानव समुदाय की जिंदगी ऐसे ही अंधकारमय हो जायेगी । मानव हित में बरसने वाले बादल भी बैरी बन जायेंगे । वर्षा चाहिये तो पेड़ – पौधा रोपे और प्रकृति की हिफाजत करते हुये धरा को हरा – भरा बनायें पशु – पक्षियों को मित्र बनाने का काम करें ।
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